हिंदू पक्षों ने 104 साल बाद समझी 'रामलला विराजमान' की अहमियत

हिंदू पक्षों ने 104 साल बाद समझी 'रामलला विराजमान' की अहमियत


अयोध्या-अयोध्या के बहुचर्चित और विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के ज़मीन के मुक़दमे में आज रामलला विराजमान सबसे प्रमुख हिंदू पक्ष के तौर पर दिखाई दे रहे हैं.


लेकिन, एक हक़ीक़त ये भी है कि हिंदू पक्ष को भगवान श्रीराम यानी आज के रामलला विराजमान की क़ानूनी अहमियत समझने में 104 बरस लग गए.


अयोध्या की विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर क़ानूनी लड़ाई औपचारिक रूप से आज से क़रीब 135 साल पहले यानी सन 1885 में शुरू हुई थी. लेकिन, इस मामले में किसी हिंदू पक्ष ने 'रामलला विराजमान' को भी एक पक्ष बनाने का फ़ैसला 1989 में लिया था.



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  • पहली बार हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज, जस्टिस देवकी नंदन अग्रवाल, भगवान राम के प्रतिनिधि के तौर पर अदालत में पेश हुए थे और भगवान का दावा कोर्ट के सामने रखने की कोशिश की थी.1885 में अयोध्या के एक स्थानीय निवासी रघुबर दास ने 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद के ठीक बाहर स्थित चबूतरे पर एक मंदिर बनाने की इजाज़त मांगी थी.


    अयोध्या के लोग इस जगह को राम चबूतरा कहकर पुकारते थे. लेकिन, एक सब-जज ने मस्जिद के बाहर के चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया. ग़ौरतलब है कि मंदिर बनाने की इजाज़त देने से इनकार करने वाले वो सब-जज एक हिंदू थे.